A story about education changes in India, starting from village to city. How we have changed from Hindi to Hinglish.

बात यही की 22-23 साल पुरानी है जब हमारा दाखिला गाँव के प्राथमिक विद्यालय से दूर छोटे विकासशील शहर में कराया गया,तब गाँव के उन विशिष्ट बच्चों में शामिल हो गए जो गाँव से दूर अध्ययन के लिये जाते थे,
अब हम माट साब से आचार्य जी और बहिन जी वाले स्कूल में पहुंचे थे(सरस्वती विद्यामंदिर)
जहाँ ज्ञान के साथ सभ्यता और संस्कार कूट कूट के भरा जाता था।
आचार्य जी संझा को कौनो ना कौनो गाँव पहले चुने रहते थे छापा मारने के लिए फिर हमरा लोगन के साप्ताहिक इतिहास खंगाल शनिवार को सोझवाते थे।
क्योंकि गाँव से दूर था इसलिए भाषा पर अलग प्रभाव था अब हम-
माई, काका,काकी,देब,लेब,ख़ाब आदि से- मम्मी,चाचा, चाची, देंगे,लेंगे,खाएंगे में बदल रहे थे,
लेकिन जब उस भाषा को अपने गांव में प्रयोग करते थे तो जहाँ हमारे उम्र के बच्चे सीखना चाहते थे तो वहीँ उम्र से थोड़ा ज्यादा वाले – बड़ा अंग्रेजी ना झारव,
यानी उस खड़ी बोली को अंग्रेजी मानते थे सब, सामने तो हमको गिराना चाहते थे लेकिन अपने घर में उसका चोरी चोरी प्रवाह करते थे,कुछ अभिभावक प्रयास करते थे अपने बच्चों को सिखाने का-
सबसे ज्यादा प्रभाव जो मुझे याद है बगल के ओपी काका पर था-
क्योंकि ओपी काका और काकी बहुत ही जलनखोर स्वाभाव के थे जिसे अन्त्रकपटी कह सकते हैं क्योंकि हम बच्चों को शाबाशी देकर लड़ाना जब तक कुछ टूट फूट ना जाये,आँख मारना सीखना,गाली सीखना आदि,
वो अपने घर बिस्कुट देने के बहाने ले जाते और भेली खिला यही सब सिखाते लेकिन बचपना में कुछ समझ ना था,
एक बार वो अपने लड़के से खड़ी हिंदी में बात कर रहे थे जिसे मैं बहुत ध्यान से सुन रहा था-
कुछ शब्द जो याद हैं-
बेट्वा हंसिवा छपरवा में घुरेस दो( यानी हंसिया छप्पर में घुसा दो)
गोड़वा में चोट कैसे लाग गया( पैर में चोट कैसे लग गयी)
बच्चा होने के नाते मैं खूब हँसा था उस समय लेकिन ये ना समझ पाया था जो हमको अंग्रेजी झारना बोलता है काहे झारने का प्रयास कर रहा है,यानी हम सब मिलके भिड़े थे उस बचपनी पुरातन युग को बदलने में,
जोर की आजमाइश कर रहे थे की किसी भी हालत में इस युग को बदल डालना है,
हम तो उस हिंदी में बहुत खुश थे धीरे धीरे गांव से बड़के शहर इलाहाबाद पहुँच गये,पढ़इये चल रही थी हमरा पीछे वाली पीढ़ी हमरा से भी तेज चली जहाँ हमरा गांव वाले हमरा खड़ी बोली को अंग्रेजी बताए थे और हम फूल के कुप्पा थे की हम अंग्रेजी बोलता हूं वहीँ पिछलकी पीढ़ी के अंग्रेजी सुन पिछवाड़ा डोल गया जब सुना-
हाय, बाय,अक्चुयुली,सॉरी,मेंशन नॉट,सिट, फिट आदि
वही दिन हम समझ गया
जवानी आयी नही की दिन लद गये
हम समझ गया अब हम पुरनिया हो गए हमरा दिन आवे के पहले लद गया हिंदी से लोग कतरा रहा है,
अंग्रेजी को खा रहा है,पी रहा है तमामा टॉनिक की दुकान भी थी शहर में- ब्रिटिश स्कूल ऑफ लैंग्वेज
अमेरिकन इंग्लिश
अहि दादा भाग रे भाग तोहरा जमाना गया,
फिर उहे 1947 वाला दिन लौकता।।आशु अनादि।।जय राष्ट्र

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Ashutosh Ojha

Bureau Chief of reputed organization. Free speech advocate and excellent writer.

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