भारत को आज़ाद हुए आज 68 साल से ऊपर हो गया पर क्या भारत अपने आज़ादी से आज तक कुछ भी बदल पाया ,या कहें जितना भी कुछ था उसे सहेज़ की रख पाया या जो था उसे भी धूमिल कर दिया..अगर एक के बाद एक मुद्दे पर नज़र डाले तो देखने को मिलता है की हम पाने से ज्यादा खोये हैं….देखते हैं
राजनीति में तो जहाँ-तहाँ परिवर्तन होता ही रहता है क्योंकि सारा परिवर्तन इसे के माध्यम से संभव होता है पर कभी कभी हितसमूह और दबावसमूह भी इसके परिवर्तन के भागीदारी होते हैं,अधिकांशतः राजनीति ही परिवर्तन करती है अपने लाभ के अनुसार..(जैसे भोजन में नमक स्वादानुसार)
सांस्कृतिक परिवर्तन देखा जाये तो भारत की अब अपनी कोई भी संस्कृति दिखाई ही नहीं देती ऐसा लगता है मानो भीख मांग के लाये हो (कुर्ता-पायजामा,साड़ी आदि तो जैसे सपना हो गया हो)अब तो हम अर्धनग्न रहने में ज्यादा खुश रहते हैं रहे भी क्यों ना भारत की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है गर्मी जो पड़ती है जहाँ पहले बर्फ गिरता रहता था।
धार्मिक परिवर्तन -यह तो तब के भारत और अब के भारत में सबसे ज्यादा हावी होता प्रतीत होता है, जहाँ पहले लोग साथ ही साथ होली,दीवाली,रमजान,ईद,बैशाखी,लोहड़ी आदि मनाते थे, अगर आज मना ले तो मीडिया को मानो क्या मिल गया हो(चेहरा ऐसे खिल जाता है, जैसे बन्दर को केला मिल जाता है) पेपर पढ़ के लगता है हम कितना अलग हैं ये लोग कितने महान हैं जो साथ में सब मना रहे हैं कारण कहीं कहीं देखने को मिलता है॥(राजनैतिक संकीर्णता का शिकार भारत)
आर्थिक परिवर्तन तो जैसे भारत को नया ब्रह्माण्ड बना दिया,जहाँ इसके जैसा कोई तारा ही नहीं( बिल्कुल अलग ग्रह)
73वां 74वां संशोधन विकेंद्रीकरण का बहुत अच्छा पैगाम रहा पर असलियत में मिला क्या..पारिवारिक विघटन
भाई के खिलाफ भाई ,परिवार के खिलाफ परिवार
जहाँ सुबह शाम घर के बाहर चौपाल लगती थी आज सून- सान मैदान हो गया, रही सही कसर आर्थिक नीतियां कर दी शहरों का विकास ,कृषि का महत्व शून्य..
भागने लगे लोग शहरों की तरफ पुरुष के साथ स्त्रियां बच्चे आखिर बचा ही कौन गांवों में चहल कदमी करने के लिए…
धन्य है भारत और भारत के मशीहा नेता जो ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी ख़ुशी अपनों से भी दूर कर दिए..जो भी बचा है उसे दूर करने में लगे हैं……..जय राष्ट्र
आशुतोष ओझा
9716286378