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ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

महागौरी देवी दुर्गा का आठवां रूप है। महागौरी की नवरात्रि के आठवें दिन पूजा की जाती है पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी महागौरी में अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति है। जो देवी की पूजा करता है वह जीवन में सभी कष्टों से राहत पाता है। माता महागौरी अपने चारो हाथों से अपने भक्तो का कल्याण करतीं हैं, माता के हाथ में त्रिशूल और डमरू है, और माता का एक हाथ अभय मुद्रा में और एक आशीर्वाद के भाव में होता है| माता एक सफेद बैल की सवारी करती हैं, और माता सफेद साड़ी पहनती हैं।

माता महागौरी के उत्पत्ति की कहानी इस प्रकार है: राक्षस शुंभ और निशुम्बा भगव ब्रह्मा के आशीर्वाद के कारण केवल पार्वती की पुत्री द्वारा ही मारे जा सकते थे| इसलिए, कि ब्रह्मा जी की सलाह पर, शिव ने माता पार्वती की त्वचा को काला कर दिया, और इस रूप को माता “काली” नाम दिया, जिसका अर्थ “काला” था। हालांकि, “काली” शब्द का अर्थ “मृत्यु” भी हो सकता है, और इस तरह माता पार्वती की छेड़छाड़ करने पर, माता पार्वती चिढ़ गयीं और चिंतित थीं, इसलिए माता ने ब्रह्मा जी गंभीर तपस्या की, ताकि वह अपना गोरा रंग वापस पा सके।

ब्रह्मा जी माता की तपस्या खुश हो कर उन्हें हिमालय में मानसरोवर नदी में स्नान करने की सलाह दी। जैसे ही माता वहाँ स्नान कर रही थी, माता की काली त्वचा उनसे अलग हो गई और उसने एक महिला का रूप ले लिया। माता ने उन्हें कौशिकी नाम दिया| चूँकि माता को काली त्वचा के अलग होने के परिणामस्वरूप, माता पार्वती को गोरा रंग मिला, और इसलिए उन्हें “महागौरी” नाम दिया गया हैं।

माता ने राक्षसों के सर्वनाश के लिए, माता ने कौशिकी को अपना गोरा , सर्व सम्मोहित कर देने वाला रंग दिया, और माता पार्वती ने पुनः काली का रूप प्राप्त कर लिया | माता सरस्वती और लक्ष्मी जी असुरो के नाश के लिए माता को अपनी शक्तियां प्रदान किया, जिसके परिणामस्वरूप काली चंडी में परिवर्तित हो गयीं, और दानव धूम्रलोचन का शंहार किया|

देवी चामुंडा ने चंड और मुंड का संहार किया , जो की चंडी जी की तीसरी आंखों से उत्पन्न हुए थे | माता चांडी तथ पश्च्यात माता फिर से कालरात्रि के रूप में प्रकट होतीं हैं और दानवों का संहार करतीं हैं, और माता कौशिकी ने शुम्भ और निशुम का संहार किया| पुराणों के अनुसार, बाद में पुनः माता, काली के साथ विलय कर गौरी के रूप में बदल जाती हैं । इसलिए, देवी कौशिकी भी पार्वती में विलय हो गई, इसलिए माता को महासरस्वती और अंबिका भी खा जाता हैं ।

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥

ध्यान

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

स्तोत्र पाठ

सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

कवच

ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी माँ नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥

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